आज कुछ अलग है इस हवा में,
जैसे प्रकृति का ही दिल टूट गया हो।
कुछ तो अलग है इस हवा में,
जानू न मैं, जानो न तुम
बस जाने वो,
जो वहां ऊपर बैठा है।
दूर से दिख जाए उसे,
जिसे दिखना हो.
पास आकर भी ना दिखे उसे,
जो उसे पहचानता न हो
वो ही काल है और वो ही जीवन,
वो ही खुशी है और वो ही दुख,
वो ही संसार है और शून्य भी वो ही।
हां मैं उसकी ही बात कर रहा हूं,
जो हिंदू कुश की उस पवित्र शिखर पर बैठा है,
जो वहां से संसार चलाता हैं,
हां मैं उस ही कैलाश स्वामी की बात कर रहा हूं।
जो डमरू बजने पर तांडव का रास रचाता है,
जो हलाहल पीकर संसार को नष्ट होने से बचाता है,
जो अघोरी है और गृहस्थ भी,
हां मैं उस ही देवाधिदेव महादेव की बात कर रहा हूं।
~ Shaurya Aditya Jauhar
India
Wonderful!
Om namah shivaay