एक ही पृथ्वी ब्रह्माण्ड में, जिसका सूरज मार्गदर्शक,
सुबह शाम का वो संकेतक, ऋतुओं का भी प्रहरी।
खेत हरे, जंगल जुड़े,नदियाँ, सागर, हिमगिरि शोभें,
संतुलित मौसम, धनाढ्य धरा,सहसा मानव का प्रहार।
लोलुप, तृष्णा, अभिभावक बन, नष्ट पंच तत्व-संतुलन,
वन जीवन का अतिक्रमण, हाहाकार मचा क्षण क्षण।
पृथ्वी खोखली, जल प्रदूषित,कटे जंगल, नदियाँ सूखीं,
बर्फीली सतह पिघल कर, फैली प्रलय हुंकार बन कर।
कौन है भयंकर विनाशकारी?-
मनुष्य।
नादान, अनजान, अहंकारी।
समय शेष है अब भी जागो,
उठो, बढ़ो, धरणी बचा लो!
~Shreya Verma Rodricks
Hyderabad, India