बादल का एक टुकड़ा
मेरी खिड़की से अंदर आया
नन्हा-सा, मासूम, खोया-सा।
“मुझे बचा लो
बाहर परेशानियाँ हैं-
धुआँ, गर्द, जलाता ताप
मैं कहाँ जाऊँ माँ?”
“आ छुपा लूँ तुझे
गोद में अपनी,”
मेरी ममता बोली,
और वो समा गया मुझमें
पानी बनकर..
~Shreya Verma Rodricks
Hyderabad, India