Poetry

नन्हा बादल

बादल का एक टुकड़ा

मेरी खिड़की से अंदर आया

नन्हा-सा, मासूम, खोया-सा।

“मुझे बचा लो

बाहर परेशानियाँ हैं-

धुआँ, गर्द, जलाता ताप

मैं कहाँ जाऊँ माँ?”

“आ छुपा लूँ तुझे

गोद में अपनी,”

मेरी ममता बोली,

और वो समा गया मुझमें

पानी बनकर..

~Shreya Verma Rodricks

Hyderabad, India

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