अगर खुद के लिए आवाज उठाओ तो आप स्वार्थी बन जाते हो
अगर दुनियां के शोर में आपकी पहचान गुम होने लगती है तो आप खुद से दगाबाजी करते हो.
खुद के लिए सोचो तो टीस सी उठती है
मन में रह रह कर
कहीं मेरे कारण तो बिखर नहीं गया सब.
जो औरों के बारे में सोच कर खुद की परवाह करना
छोड़ दो तो खुद की नजर से नजर कैसे मिला पाओगे अब.
खुशियों की चाभी अपने आपके हाथ में है चाहे दूसरों के आगे अपना वजूद मिटा डालो या अपना वजूद निखारो बेपरवाह होकर.
किसी और ने सोचा था क्या तुम्हारे बारे में जो
घुली जा रही है उम्र सोच सोच कर जिए जाने में.
~ Dr. Shivangi Srivastava
Motihari, India