Poetry

स्वाध्याय ‘स्व’ का

आदमी को प्रतिदिन आयने मेंअपना चेहरा देखने के अलावाकभी कभीउसे पढ़ना अवश्य चाहिए,परन्तु वह प्रायःऐसा करने से डरता हैघबराता है, क्योंकिवास्तविकता से सभी डरते हैंकैसे सामना करें अपने ‘स्वयं’ सेजो अपने ही मानदण्डों परखरा नहीं उतर पाताकभी कभी तो रूह कांप उठती हैआदमी घबराया है तोअपनी कटु वास्तविकता से,डर छुपाने को आवरण ओढ़े रहता हैछद्म आवरण छोड़वास्तविकता से रूबरू होनाजीवन का दर्शन कराता हैभ्रम से मुक्त हो संसारी धूल छट जाती हैसोने का निखार आ जाता हैइसलिए अपने ‘स्व’ का स्वाध्याय करने सेजीवन सफल हो जाता है

~Dr. Kailash Nath Khandelwal
Gayatri Tapobhumi, Mathura UP

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