तेरे पदचाप की आहट भर से,
वो धम-धम की गर्जनाकर से मेरे मन का गिरजाघर बिखर , डर से सिहर सा जाता हूँ मैं, की तेरे होने के एहसास भर से धक सा सहम जाता हूँ मैं , तेरी मौजूदगी में अपने वजूद को ही नकार, मैं कलाकार -बेकार,अपनी हस्ती का लोक -हंसी की मूरत बन , मूक खड़ा हीन होने का भाव लिए ,मन में उठी हूक़, निहत्था अभागा अभाव हो जाता हूँ मैं ,
तेरे कहीं जाने की अफवाह भी सुन , तितली बन काल के गहन,तू मेरी खुशियों का ग्रहण,
तेरे बुने घने घणें घनों को फलांग , उस खूबसूरती के क्षितिज में लगा छलांग , मनोहर मंजरियों से अलंकृत , अपने मन में बनाई बसाई ,मेरी खुद की अपनी रमणी
हस्तों पर हिना से सजाई लाली से कर शोभित स्वछंद खग स्वतंत्र हवा का गहना पहन, सुमन पान करता मैं. अवेहलना और अवमानना का आवरण ओढ़े, ज़िन्दगी की सीख पाने विद्यालय में बिताये जीवन के इतने वर्षों की तालीम ,
तेरी विद्यमानता में गुजारे हर एक क्षण को अगर बेहतर नहीं तो, बराबर की टक्कर तो दे ही देते हैं ,
तेरे एक इशारे , एक आवाज़ पर किसी गेंद की तरह कभी इधर फुदकता ,कभी उधर लुढ़कता , कभी अपनी फुलवारी में खिला गेंदे का फूल मुरझा सा गया हूँ तेरे पतझड़ के झूमते बवंडर में , ना ज़िंदा को नेस्त नाबूद , उसे बंद ताबूत करने की ताकत , ना मुर्दे को फिर जीवित करने का सामर्थ्य , फिर भी पाले यह गलतफहमी , मान खुद को भगवान बैठा तू , मान मेरी तू खुदा तो बहुत दूर, तू तो बस एक बंदा होने की काबिलियत से भी इतर, तू बस वो एक प्रस्तर, अभी भी वक़्त है मान मेरी ,की छोड़ ज़िद्द हिमालय की ऊंचाई को नापने की , अपने झूठे आडम्बर से उस में छेद करने की,उसे हिलाने की , अगर खुद को भी माप पाया इस चार दिन की चांदनी में , इस ऊबड़ -खाबड़ सी ज़िंदगानी में , तो अपने जीवन का शिखर पा जाएगा, भले चोट खाये पर चोटी पर पहुंच जाएगा यह जो तेरा सौभाग्य ,हुआ मेरा दुर्भाग्य की मिला तुझे वह चिराग उस रात , घिस उसे मेरी सुकून की दुनिया में,मेरे अरमानो में, अपने फरमानो की चिंगारियों से लगा आग , तब बना तेरा यह निराधार सा बनावटी राजमहल, संभाले बागडोर उसके खोखले राजशाही प्रशासन की उसके मिथ्या सिंहासन पर अधलेटा सा अनाड़ी तू , तेरे आदेश की प्रतीक्षा में बेगैरत सा अपने बैकुंठ की लालसा मन में दबाये ,और भारी मन से अवरुद्ध होते इस नीलकंठ में ये चार शब्द चबाये , एक कोने में पड़ा मैं, कभी अपने खेल का खिलाडी, अब हो चौपट यही दोहराता “क्या हुकुम मेरे आका”।।~Abhishu Sharma
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