Poetry

Ek Titli Ki Kahani

 देखो देखो ये तितली कितना ऊंचा उड़ने चलीं  है

अपनी ही धुन में अब ये कहाँ निकल पड़ी है

न दुनिया की फ़िक्र है इसे न समाज की पड़ी है

न जाने ये फिरसे अब क्या करने चलीं है

लाख़ समझाया इसको न उड़ इतना ऊंचा

तेरी हैसियत नहीं अब तू रुक जा यही

हौसला तोड़ने ये दुनिया खड़ी है

पर तितली ने किसी की एक ना सुनी

और छोड़ के अपनी ज़मीन गहरे आसमान में उड़ चलीं

खूब उडी वो आसमान में

भटकती रही दिनों दिन

पाने को अपनी मंज़िल

कई बादल देखे कुछ नीले कुछ काले

कुछ सहलाते तो कुछ डरते

कोई धुप से बचाता तो कोई गरज के बरस जाता

तितली घबराती कभी-कभी सहम जाती

पर तितली ने अपनी उड़ान काम न होने दी

खूब सवारा खूब निखारा खुद को

और अब वो कुछ बदली-बदली सी लग रही थी

सूरज से ज्यादा अब वो चमक रही थी

उसकी उड़ान जो रंग लाई थी

उसने अब पहचान जो अपनी पाई थी

कर लिया अब वो सब हासिल कल तक जो कहते थे

तेरे लिए नामुमकिन है तितली, जरा सी तो है तू

गर्व से आज सबके सामने खड़ी है, थोड़ी-थोड़ी उसकी आँखों में नमी है

देखो देखो ये तितली अब फिरसे उड़ने चलीं है

                                      

~Astha Rajak

UAE

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