वीरान से जंगल खोखले दरख़्त
बेज़ुबान सी फ़िज़ा नीरस सा सफ़र
बंजर ज़मीन सूखी बेजान नदियाँ
कपोत घेरे में लिपटा हुआ आसमाँ
क्या ऐसा होगा हमारा जहाँ ?
भरोसा एतबार का खोटा सिक्का
ख़ुदगर्ज़ी में नींव तक डूबा ज़माना
प्यार वफ़ादारी का झूठा मायाजाल
बेलिबास ख्वाहिशें सिमटी आरज़ू
क्या ऐसा होगा हमारा इंसान ?
सच्चाई का अंशुक पहने देते धोखा
एक ऐसा छलावा जो परिभाषित था
आज यथार्थ की ओर बढ़ता हुआ
सच्चाई में लुप्त होता दिखता है
क्या ऐसा ही कुछ होगा यहाँ ?
~Meenu Lodha
India