Poetry

एक प्रश्न

मैंने देखा है अपने पिता को

दिसम्बर की कड़कड़ाती ठंड में ,

पानी की धार से जूझते हुए

तनिक संकोच नहीं मुझको ,

देश के प्रधान सेवक से पूछते हुए

अन्नदाता रो रहा है ,

आपका जमीर सो रहा है ,

21वीं सदी में क्या ?

घोर अनर्थ हो रहा है ,

तनिक शर्म नहीं आई आपको

अपना ही घर लूटते हुए

तनिक संकोच …………….

उघोगपत्तियों के हितसाधक बन गए

एसी भी क्या मजबूरी है ।

किसान की जमीन गिरवी रख दें

पर जियो सिम जरूरी है ।

अरे हमने तो देखा था गांधी को

हरिजन हित में टूटते हुए

तनिक संकोच नहीं ………….

चौकीदार को ये अधिकार  नहीं

घरबार ही गिरवी रख डाले

इससे तो अच्छा है हम

इंसान नहीं कुत्ता पालें,

अमानत में खयानत तो वो भी नहीं करता

पेट की आग से जूझते हुए

तनिक संकोच नहीं मुझको

देश के प्रधान सेवक से पूछते हुए

 

                                        ~अप्राजिता (Aparajita)

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