Poetry

बैसाखी

लो  पकड़ा दी मैंने आज, बैसाखी अंग्रेजी की !

मेरी हिंदी आवाज़ को अंग्रेजी की लिपि मिल गई !

ये तो सभी जानते हैं कहाँ रहती है हिंदी !?

स्कूल की पाठ्यपुस्तकों में रहती है बन्दी !

 

कैद से छूटती कभी तो आ जाते नए प्रतिद्वंदी,

फ्रेंच, जर्मन, स्पानिष् – जैसे काफी नहीं थी एक अंग्रेजी !

अंग्रेज़ों से आज़ादी की लड़ाई चली थी बड़ी लम्बी,

पर अब अपनी आज़ादी के लिए लड़ रही है हिंदी !

 

घायल हुई, तिरस्कृत हुई, पर जारी है उसकी लड़ाई !

हिंदी ही नहीं, हर क्षेत्रीय भाषा पर है अंग्रेजी की परछाई !

मैंने कई बार, हिंदी को लंगड़ाते देखा है,

चोटों पर दोहों और पदों के मरहम मलते देखा है !

 

अपने साहित्य के झोले को टटोलते, उसमें झाँकते देखा है

गीत, कथाएँ, उपन्यास,

टूटे बिखरे अक्षर या आत्मविश्वास ?!

जाने क्या ढूँढती रहती है, मैंने चुप चाप दूर खड़े देखा है !

 

पहले, आस पास के प्रान्तों से…

सहेलियाँ मिलने आ जाया करतीं थीं !

विविध भाषाओं की किलकारियाँ

मेरे देश के आँगन में गूँजा करती थीं !!

 

पर जब से अंग्रेजी !

साथ अपने सभ्यता की भीड़ लेकर आई है !

जाहिल समझ हिंदी स्वयं को, सबसे रहती सकुचाई है !

भीड़ में अब उस से चला जाता नहीं !

 

उसे अब कोई जानता पहचानता भी तो नहीं !

कुचले गए जाने कितनी बार पैर उसके

जैसे हो कोई, जो किसी की आँखों को न दिखे !

आज भी, कुछ लोगों को हिंदी दिख तो जाती है !

 

मगर, उस से मेल जोल बढ़ाने में शर्म सी आती है !

अंग्रेजी को सब ख़ूब जानते पहचानते हैं !

इनकी नस्ल जवान, आकर्षक और रौबदार है !

इसे पढ़ने लिखने वालों की चारों ओर भरमार है !

 

सब साथ ही रहते हैं और आपस में ही बतियाते हैं !

पुरानी तो पहले से ही थी, हिंन्दी !

अब हो चली है अकेली भी !

कभी कभार कोई

 

ठुमरी, कजरी, ग़ज़ल या गीत सुना जाता है !

बाकी सब का

अंग्रेजी की मिलावट से काम चल जाता है !

आज उसे पकड़ाई है हमने अंग्रेजी की बैसाखी,

 

और जो अब भी न सुनी हमने पुकार उसकी !

कैसे बदलेंगे बेकार, अवांछित सी छवि उसकी ?!

देखो ! अक्षर उसके सिमटने लगे हैं !!

अब कागज़ पर लिखने के

 

दस्तूर भी तो मिटने लगे हैं ?!

कैसे कोई देश अपनी संस्कृति और भाषा को भुलाकर,

बढ़ सकता है बोलो समृद्धि और प्रगति के पथ पर ?!

अपनाकर गर्व से ! जो रहा है सदा से हमारा अपना !

आओ फिर से लौटा लाएँ हिंदी की खोई हुई गरिमा !

 

                                                                                         ~ Deepa Swaminathan

                                                                                        Bangalore, India

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