रातभर बारिश हो रही थी कल,
रात भर चिड़िया रो रही थी कल|
कुछ इस तरह आशियाना टूटा है,
भीगे तूफ़ानो ने सब कुछ लूटा है|
भले ही गलती बारिश की हो,
पर अब न कर पाएंगी किसी शाख पे भरोसा वो|
कभी हुआ करती थी वो शाख की दुलारी,
उसीने तो ली थी चिड़िया को संभालने की जिम्मेदारी|
तो क्या वो झूठ था, बहाना था?
आरे, तब मौसम भी तो सुहाना था|
बुरे वक्त में कौन देता है सहारा,
ज़िन्दगी भर के वादे करनेवाला भी नहीं होता हमारा|
अब समेटना है तिनका तिनका उसे,
बल बढ़ाना है अपने मन का उसे|
भरनी है उड़ान अपने पंखों को मज़बूत कर,
ताकि, ना रेहना पाये किसी शाख पे निर्भर|
शाख का क्या है, उसे फिर कोई घरौंदा बनाने वाला मिल जायेगा,
पर चिड़िया को अब ऐसा आशियाना बनाना है,
जहां कोई बारिश, कोई तूफ़ान, उसका कुछ बिगाड़ नहीं पाएगा|
~ Rasshmie Salunkhay
Maharashtra, India