Poetry

पापा आप मेरे मायके की छत हो

पापा आप मेरे मायके की छत हो

सुरक्षा का एहसास दिलाते

हर वक्त, व्यस्त होते हुए भी कहते

कुछ नहीं कर रहा

मेरी सीधी उल्टी बातों को सही

करते, समझाते, ज़िन्दगी के कुछ

पाठ पढ़ाते,

 

पापा चलो आज फिर क्यूँ न मैं बच्ची बन जाऊँ

उंगली पकड़ आपकी साथ रेस लगाऊँ

सीने से लिपटा कर आप मुझे लोरी सुनाना

और मैं आपकी गोद में सिमट कर सो जाऊँ.

 

पापा यूँ बीमार न पड़ा करो

रात नहीं कटती, बहुत मुश्किल से

सम्हालती हूं खुद को

मैं अब लाचार सी बस फोन

पर बात ही कर सकती हूं

दौड़ कर कैसे आऊँ.

पापा मेरे बच्चों की उंगलियाँ पकड़ उन्हें

भी जीवन के कुछ पाठ सीखा दो,

पुराने किस्से, बचपन के हिस्से बता दो.

पापा मुझे सीने से लगा कर माथे

पर बस हाथ फ़ेर दो.

पापा एक बार फिर गालों पर

थपकी दे नींद से जगा दो.

 

 

                                                                               ~ Dr. Shivangi Srivastava

                                                                                            Motihari, India

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