ये जो मासूम पुष्प खिलखिलाते
जैसे सावन की बूंदों के रंगीन प्याले
आज मुझसे प्रश्न कर रहे हैं
दहलीज पर काली घटा की
आहट, हवा संग सावन गाते
मुझे कुछ कहता है —
सब है लेकिन एक वो
क्यों नजर नहीं आते ?
जब जवाब ढूंढता हूं
तुम्हे खो जाता हूं
जब नहीं सोचता तो
तुम हर कहीं मिल जाते हो।
बारिश के बादलों में हो तुम
बच्चों की काग़ज़ी कश्तियों
में बह रहे हो तुम
बचपन में हो तुम
और बचपने में भी हो तुम।
सन्नाटे में और गरज में
मेरी परछाई मैं और हर तन्हाई में
जो बारिश ना भिगो सके
उन आसूंओं में हो तुम।
शक्ति हो अंधेरे में
मुस्कान जो अकेले में
कभी हंसाती थी
हर डांट और सहारे में हो तुम
पंछी पहाड़ पेड़ फूल
और पुरानी गांव की सड़क वाली धूल
हर त्योहार, हर पहर के आते
तुम हर कहीं हो दिख जाते।
ये जो मासूम पुष्प खिलखिलाते
जैसे सावन की बूंदों के रंगीन प्याले
आज मुझसे प्रश्न कर रहे हैं
उन्हें सिर्फ ये कह पा रहा हूं
सितारों का कोई पता नहीं होता
न रोशनी का ठिकाना
अब कहीं नहीं हो तुम
लेकिन सब कुछ बन गए हो तुम।
~ Tejas Yadav
Paris, France