हिंदी दिवस
इस बार भी
आकर चली गयी
पता नहीं
कितनों को पता था…
कितनों को नहीं?
यह उपेक्षा,
यह दुराव
यह नाटकीयता?
अपने ही ख़यालों
में मशगूल
हिन्दीभाषी
विस्मयकारी?
ढूंढ रहें कहाँ
अपनी छवि?
हाँ, स्कूल कॉलेजों
में हिंदी दिवस
मनाया गया
लेखन, वाद-विवाद
प्रतियोगिता
से इस मधुर दिवस का
अभिनंदन हुआ।
दुःख है कि
समाचार पत्रों
तथा सोशल मीडिया
में दो-चार पंक्तियाँ में
ही ज़िक्र आया…
दूरदर्शन के चैनलों
पर इसकी जानकारी
गौण थी
पर शोर-शराबा ज़ारी था
वही नये -पुराने विज्ञापनों का।
नेताओं की
आलोचना-समालोचना
के बीच
हिंदी दिवस की
पाज़ेब की झंकार
इस साल भी गुम हो गई।
~ Anjana Prasad
Nagpur, India