बहुत दूर तलक आ गए हम ,
बहुत पीछे कही छूट गए तुम |
कारवां बढ़ चला मंजिल की ओर,
और हम यादो को दफ़न कर आये कब्र मे
बहुत दूर तलक आ गए हम ,
,बहुत पीछे कही छूट गए तुम |
दास्तां मुक्त हो गयी अपने अंजाम से ,
और हम ताबीर मिटा आये चंद लम्हो की इबारत से |
बहुत दूर तलक आ गए हम ,
,बहुत पीछे कही छूट गए तुम |
अंदाजे बयां बदल दिया बाअदब अल्फाज से ,
और तब्दील होगये मुख़्तसर अपने आप से ||
बहुत दूर तलक आ गए हम ,
,बहुत पीछे कही छूट गए तुम |
कांधो पर ढोना छोड़ दिया रिश्तो के बोझ को ,
और वजूद को सिमटा लिया अपने ही खोल मे ||
, बहुत दूर तलक आ गए हम
बहुत पीछे कही छूट गए तुम |
खलिश से दामन छुड़ा लिया जुबां ने ,
और संवारना छोड़ दिया काँटों सजे गुलो को गुलशन मे ||
बहुत दूर तलक आ गए हम ,
,बहुत पीछे कही छूट गए तुम |
एहसास शिद्दत तर कर गयी दामन को ,
और दस्ताने गम को दरबदर कर आये दिले आशियाँ से |
बहुत दूर तलक आ गए हम ,
,बहुत पीछे कही छूट गए तुम |
रंग ए महफ़िल सज गयी रंग महल मे ,
और लबो पर ,तरनुम छेड़ आये पैगामे जिंदगी के ||
बहुत दूर तलक आ गए हम ,
,बहुत पीछे कही छूट गए तुम |
फासले मिट गए दरमियाने मेहताबो के ,
और हम तो मुक्त हो गए सरहदों के जाल से ||
बहुत दूर तलक आ गए हम ,
,बहुत पीछे कही छूट गए तुम ||
~ Pratima Mehta
Jaipur, India