मैं हूँ, मैं हूँ , बस मैं ही तो हूँ
सर्वज्ञानी और सर्वशक्तिमान हूँ
निर्विरोध, मैं इस धरा पर महान हूँ |
बोलता ये फिर रहा, मानव भूलोक में
किंचित नहीं सोच रहा, नित नए प्रयोग में|
विकास अपना कर रहा, निर्विचार दर-बदर
सूक्ष्म प्राणियों को, कर रहा तितर-बितर |
धरा नहीं किसी एक की, न देखती वो रूप विशाल
उसके नहीं विचार में तू प्रथम, तेरे कर्म निहाल|
मध्धम करनी होगी तुझे गति, गर चाहिए सतत प्राण
नहीं तो सूक्ष्म ही पर्यापत है , मिटाने को जीवन प्रमाण|
~Dr. Rashi Jain
India