प्यार उससे किया, बेशुमार मैंने,
खुशी अब भी देने को दिल करता
उसके दिए गमों के बादले में।
उसके इन्कार को भी शिद्दत से निभाया,
उसकी उदासी अब भी गवारा नहीं
जो आंसू दे कर गया आंखों में।
सोचा था थाम के हाथ उसका
तय करेंगे सफ़र ज़िंदगी का,
जो चला गया, बिछा के कांटें राहों में।
गीत गज़ल से में थे उसके किस्से,
पर वो क्या समझता ज़ुबानी,
जो पढ़ ना पाया निगाहों में।
अब शिकवे गिलों से भी क्या हासिल,
चोट गहरी दे के गया फिर भी
सुबह ओ शाम रहता मेरी दुआओं में…..
~Dr. Neeru Jain
India