मुस्कान बेवजह तेरे होठों पे चली आए,
तो समझ लेना कि ये मैं हूं,
गुलाल उड़ उड़ के तेरे गालों पे बिखर जाए
तो समझ लेना कि ये मैं हूं….
तल्खियों भरी शाम में,
लब तेरे अचानक ,
कोई प्रेम तराना गुनगुनाए,
तो समझ लेना कि ये मैं हूं….
यादें खींच ले जाए तुझे,
पुरानी चिट्ठियों तक,
महकने लगे जो इनके अल्फाज़
तो समझ लेना कि ये मैं हूं…
वजह जब ढूंढ रहे हो,
बेवजह खुश होने की,
झांकने लगे किताबों से जो सूखे गुलाब
तो समझ लेना कि ये मैं हूं….
मूंदते ही आंखें,
सकूं पसर जाए आसपास,
नाचने लगे जो कदम तेरे बिन ताल,
समझ लेना कि ये मैं हूं…..
मैं ही हूं बस तेरे आसपास….
~Dr. Neeru Jain
Jaipur, India