कहनी थी बाते कई
पर कहा कुछ नहीं,
अफसोस की मेरी आंखों में
पढ़ा कुछ नहीं।
ढह गई थी दीवारें
जुदाइयों की सारी,
पर मिल के भी ये अजनबीपन
घटा कुछ नही।
अफरा तफरी मची थी दिल में
आज मिलना है उनसे,
पर मिल के बढ़ गई बेचैनियां
सकूं मिला कुछ नही।
इक सजा सा लगता है
जीना तेरे बैगर,
पर तूने अपने हालातों का
जिक्र किया कुछ नहीं।
क्या हम ही पगलाए रहते है
सवाल में पड़ गए,
निरूत्तर रह गई इश्क़ की पहेलियां
कि तूने कभी बुझा कुछ नही।
~Dr. Neeru Jain
Jaipur, India