Poetry

एकांत और अकेलापन

जीवन को श्रंखला को जीने, समझने उसके हर पहलू

भर अंदर आत्मविश्वास और मेहनत का हल कांधो पर रख, बना वह बैल  कोल्हू,

परिश्रम और प्रयास का बन श्रद्धालु , उठा गिरा, सह कर फिर हुआ खड़ा  वो भोलेनाथ का भोलू

स्तुति- सच ,कर्म- श्रम की धार तेज जैसे चाक़ू,

पर फिर ,नज़र लगी उसके उत्थान पर, जगत हो गया पूरा डाकू,

हुए सब आतुर काटने उसकी खुली आज़ाद  बाजू, निरंतर कोशिश की चेष्टा में लगा दिए कीटाणु, की

सहस्त्र वारी सुंनाने पर तो, मिथ्या जतलाने पर तो , झूठ भी हो  निश्चित, सच  को कर  देता है बिच्छू,

हीन भावना  के नाग ने डर और दहशत के स्याह समुन्दर में डुबो बहका  दिया कभी था जो स्वछंद त्रिशू,

पर कभी हार न मानने की ज़िद्द, अडिग अचल निश्छल वह गिरी अपने शिखर पर बसने का ख्वाब लिए चल दिया है

एकांत की ताकत से अकेलेपन को निगलकर, आत्मनिष्ठा की अग्नि को फिर प्रज्वलित कर निकल पड़ा है फिर विश्व जीतने, की

खुद के साथ वक़्त बिताकर समझ गया हूँ,

बीज से अंकुर फूटने , बनाने उसे  विशाल विराट वृक्ष,

 उम्मीद के दीये में यकीन के घी से  पिरोनी होती है बाती

 तब भटके राहगीर को सुकून की छाया,

जहां -तहां  टकराते प्रकाश को अपना  आश्रय मिलता है

~Abhishu Sharma

India

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