Poetry

संपूर्ण जीवन

हम बदल रहे पल पल
कभी चलते, कभी रुकते
डूबते उतराते विचारों के सागर में
खिन्न होते, प्रसन्न होते
परिस्थिति को समझने के प्रयास में
दार्शनिकता का भाव लिए
कभी झुंझलाते हैं
कभी हंसते हैं अपने आप पर
क्यों नहीं मान लेते
जीवन की अनसुलझी गुत्थी को
कभी कोई सुलझा सका है
और फिर सीधे सपाट
जीवन का आनंद ही क्या
जब तक इस जिंदगी से
दो दो हाथ न हों
लगता है संपूर्ण जीवन जिया ही नहीं
                                             
~Dr. Kailash Nath Khandelwal
Agra, India

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