Poetry

मुलाकात की शाम सजाई ही नही

मुलाकात की शाम सजाई ही नही,
जुड़ा वेणी, तूने लगाई ही नहीं,
मेंहदी लगे हाथों की रंगत देख,
तेरी चाहतों का गुमान कर इतराई ही नहीं..
जुदाई चली आई झट से, जोगिया रंग ओढ़,
अभी तेरी प्रीत रंग, मैं रंग पाई ही नही…..
रातें अंधेरी क्यूं, ठहरा दी या रब,
मिलन की इक शाम, संग गुजरी भी नही…
सुबह की रंगत देखूँ तेरे संग संग
प्रार्थना मेरी, क्यूं रंग लाई ही नही….
जब भी तुझ तक आना चाहा,
अटारी इतनी ऊंची कर दी, कि
तेरी दहलीज भी मैं, छू पाई नही..
हम तो खुद ही कहते रहे,
हम ज़र्रा, आप आफताब
झूठी हैसियत कभी दिखाई भी नही…
तेरा बिगड़ के चले जाना, वो छोटी सी बात पे,
खता ऐसी भी क्या, जो तूने बताई ही नहीं….
                                                   
~Dr. Neeru Jain 
Jaipur, India

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