Poetry

कुटिल प्रेम

यूं ही तो विश्वास नहीं हो जाता किसी पर ….
कितना समय कितनी बातें लगती है विश्वास जमने में…
 फिर कैसे एक पल में आघात हो जाता उस विश्वास पर …
यूं ही तो प्रेम का एहसास नहीं हो जाता..
 कितना विश्वास मिन्नत मनुहार लगता इसे लगाने में…
 फिर कैसे एक पल में मर जाता वह  एहसास…
                                          
 यूं ही तो प्रेम गहराई में उतर नहीं जाता …
कितना इंतजार होता है यह गहराई पाने में..
 फिर कैसे गहराईयां बेमानी हो जाती है ..
जिसके बिना जीना मौत से बदतर लगता..
 कैसे वही जिंदगी छीन लेता ..
साथ बिताए हसीन  पल  क्यों याद नहीं आते ..
जब उसके हाथ हथियार उठाते
 उस विश्वास को कुचलने में …
कहां खो जाते वह हसीन पल ..
 जिसमें वक्त को को रोकने की कोशिश की होगी ..
                                          
जिसने प्यार से अपनी जिंदगी उसकी हाथों में दी होगी …
कैसे हथियार उठाया होगा उन हाथों ने कैसे वार किया होगा उसके विश्वास पर..
 उसकी आंखों में बेबसी देख
 कैसे पसीजा  ना होगा दिल उसका… कैसे उसके मुस्कुराहट को चीख में बदला होगा..
 जिन बाहों में कभी सुलाया होगा उसने..
 आज कैसे बड़े हो हाथ उसके टुकड़े समेटने ..
                                          
…और इस दर्द का सिलसिला यूं खत्म नहीं होगा ..
इस झूठी दुनिया में कल फिर कोई निकलेगा प्यार की चाहत में ..
कल फिर दरिंदगी प्यार पर हावी होगी फिर विश्वास के टुकड़े होंगे ..
सिसकियां कैद हो  जाएंगी और दुनिया यूं ही चलती रहेगी…
                                                            
~Anu Agrawal
Jaipur, India

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