तेरी लिखी चिट्ठी में,
तुम्हारी मुस्कुराहट पढ़ रही हूं
तेरी लिखी चिट्ठी से,
तेरी अंगुलियों का स्पर्श ,
तेरी सांसों की महक चुन रही हूं…..
शाम की खिड़की खोल
यादों की बारिश में,
हाथ तेरा थाम
बारिश की बूंदों की छप छप में,
नई कविता बुन रही हूं…..
तुम नही हो फिर भी
तेरी आवाज़ यूं कहती कानों में,
सुनो, चाय पिलाओगी क्या..!
तुम और मैं चाय की हर चुस्की के संग
शाम की हसरत को जहीन कर रहीं हूं,
और चाय के उस कप से
तेरी अंगुलियों का स्पर्श ,
तेरी सांसों की महक चुन रही हूं…..
~Dr. Neeru Jain
Jaipur, India