Poetry

तुम और मैं

तुम और मैं जैसे,
एक डगर के दो राही।
कदम बड़े थे मेरे,
पर राह थी तुम्हारी।।
                                   
तुम और मैं जैसे,
सुबह और शाम अंधियारी।
रोशनी से सजे थे तुम,
और मैं परछाई तुम्हारी।।
                                   
तुम और मैं जैसे,
बगिया की किलकारी।
राह में मेरे बिछे थे काटे,
और तुम फूलो की पंथवारी।।
                                   
तुम और मैं जैसे,
प्रेम के दो पुजारी।
तुम गोकुल के कान्हा,
और मैं मीरा बेचारी।।
                                   
तुम और मैं जैसे,
किताब की वो कहानी।
सारांश हो तुम,
और मैं पंक्ति तुम्हारी।।
                                   
तुम और मैं जैसे,
अंतरमन की खुमारी।
तुम सीमित थे मुझमें,
और मैं असीमित नारी।।
                                   

2 Comments

  1. बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति………..👌👌

  2. बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति…….👌👌