Poetry

जब नैनीताल में सुन्दर मगर ठंडा खाया था हम दोनों ने!

घूमने गए थे हम दोनों एक दिन कॉलेज के मुताक़लीम में!
होटल से बाहर निकले कुछ ठंडा खाया हम दोनों ने!
ठंडा था मगर जिस तरह से रंग था उसमे वो सुन्दर था!
जब नैनीताल मेंसुन्दर मगर ठंडा खाया था हम दोनों ने!
ठण्ड इतनी के साथ -पैर सुकूड़ गए हो जैसे सभी के!
मगर बोली के अलग करना है कुछ ठंडा खाया हम दोनों ने!
ठन्डे में क्या पसंद उसकी वो फ्रूटी क्योंकि आम बहुत पसंद था उसको!
जब नैनीताल में सुन्दर मगर ठंडा खाया था हम दोनों ने!
स्वटर पहनी और बोला मैं तबियत खराब हो जाएगी हमारी!
फितूर कुछ अलग था उसमे फिर कुछ ठंडा और खाया हम दोनों ने!
नैनीताल नहीं जैसे कही बैंगलोर आ गए हो हम गरम जगह में!
जब नैनीताल में सुन्दर मगर ठंडा खाया था हम दोनों ने!
सफ़र अब हमारा अंतिम पड़ाव पे आ गया था हमें घर जाना था!
कुछ खट्टी -मिट्टी यादें लेके हमने उसके पसंद की आखरी में लस्सी पी हम दोनों ने!
स्वादिष्ट पिने में और सजावट की कुल्लड़ में वो सुन्दर दिखने में!
जब नैनीताल में सुन्दर मगर ठंडा खाया था हम दोनों ने!
                                             
~कलमकार (Kalamkaar)
India

One Comment

  1. Thank u so much for featuring me A Warm thanks from kalamkaar side. I request pls if possible its kalamkaar not kalamkar.