Poetry

जब जब दीप बुझा

जब जब दीप बुझा

ज्योति की लाश  राख में मिल गयी

जब जब मेघ छँटा

इंद्रधनुष की छटा धुल गयी

जब जब तार वीणा के टूटे

ध्वनि विस्मृति में घुल गयी

और

जब जब अधरों ने कुछ कहा

प्यार की कशिश खो गयी

जिस प्रकार

भव्यता और संगीत

बुझे दिए और टूटी वीणा को

प्राण नहीं दे सकते

वैसे ही जब आत्मा मौन हो

तब हृदय की प्रतिध्वनि

कोई गीत नहीं लौटाती

कोई गीत नहीं

बल्कि करुण शोकगीत

दे जाती है

जो उस हवा की भांति है

जो टूटी कोठरी में घुस कर

रुदित झंझावात सी

मृत मांझी के भाग्य की

घंटी बजा जाती है

                                         

~Sudha Dixit

Bangalore, India

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