जब जब दीप बुझा
ज्योति की लाश राख में मिल गयी
जब जब मेघ छँटा
इंद्रधनुष की छटा धुल गयी
जब जब तार वीणा के टूटे
ध्वनि विस्मृति में घुल गयी
और
जब जब अधरों ने कुछ कहा
प्यार की कशिश खो गयी
जिस प्रकार
भव्यता और संगीत
बुझे दिए और टूटी वीणा को
प्राण नहीं दे सकते
वैसे ही जब आत्मा मौन हो
तब हृदय की प्रतिध्वनि
कोई गीत नहीं लौटाती
कोई गीत नहीं
बल्कि करुण शोकगीत
दे जाती है
जो उस हवा की भांति है
जो टूटी कोठरी में घुस कर
रुदित झंझावात सी
मृत मांझी के भाग्य की
घंटी बजा जाती है
~Sudha Dixit
Bangalore, India