चोट यूं खाई कि, मुस्कुराना छोड़ दिया,
हमने अब इश्क़ की गली से,
आना जाना छोड़ दिया…
तितलियों सा उड़ते फिरते थे,
मस्त, बेफिक्र, यहां वहां,
ऐसी नजर लगी यारों कि
पंख फड़फड़ाना छोड़ दिया…
गम क्या है कहां जानते थे,
इश्क़ की सोहबत में
बड़े इतराए फिरते थे, पर
दिल की बस्ती, कुछ ऐसी उजड़ी कि
खुशियों ने, मेरा ठिकाना छोड़ दिया…
जिन आंखों में बसती थी, तस्वीरें बेशुमार उनकी,
आंसुओं ने रूह तक डेरा डाला
सतरंगी ख्वाबों ने अब,
आंखों में आना छोड़ दिया…
इश्क़ के नशे में, आसमा पे चढ़ नाच रहे थे,
दो जिस्म इक जान सा, खुद को मान रहें थे,
उनकी आंखों में जो देखा, अक्स किसी का,
इस पागलपन से खुद को भरमाना छोड़ दिया…
चोट यूं खाई कि, मुस्कुराना छोड़ दिया…
~Dr. Neeru Jain
India
Thank you so much 🙏💐