हर बार मैं जो आता हूं
उम्मीदें ही लेकर आता हूं
देखो तो उम्मीदों पर ही
एकांत घरोंदे में मैं जीता हूं
न जाने क्या क्या सपने बुनता हूं
अबकी ये कहूंगा, ये करूंगा
नहीं माना तो ऐसा भी कर दूंगा
ईश्वर कभी तो सद्बुद्धि देगा दोनों को
मैंने तो सदा उनका हित ही सोचा है
फिर मुझसे ऐसी क्या वैमनस्यता
मैंने तो कभी किसी का बुरा सोचा भी नहीं
जिसमें वो तो मेरे अपने ही हैं
पर हां, अपनों में अब अपनेपन का
एहसास दुर्लभ वस्तु होकर रह गई है
पल पल मैं रोज जीने का जतन करता हूं
दूसरे पल मरने का अनुभव जीवंत हो उठता है
आते वक्त उत्साह से पूरा लबरेज होता हूं
धीरे धीरे मरने जीने के खयाल हाबी होकर
मेरी एकांत-धाम यात्रा की तैयारी करने लगते हैं
बस ऐसे ही जीवन-पथ को आनंद-पथ में
परणित कर तुम्हारी यादों में जीवन पूरा कर रहा हूं।
मैंने वादा किया है तुमसे
मैं कहीं भी रहूं
कैसे भी रहूं
तुम्हारे अधूरे कार्य
पूरे करना
जीने का एकमात्र उद्देश्य
बनाए रखूंगा, बस
तुम्हारी प्रेरणा, मार्गदर्शन, और
तुम्हारा रुहानी साथ बना रहे ।।
~Dr. Kailash Nath Khandelwal
Agra, India