नींद कहां आयेगी जब,
रात है खुमार की
पालकों की पालकी में
उतर आई,
तस्वीर मेरे चांद की…..
होश में आने की यारों,
हिदायत कैसे करे असर
कि उनकी हंसी में है मानो
तसीरें शराब की….
चलती हूं तो रास्ते ही
बातें करते अब तो मुझसे,
हाथ पकड़ ले जाते मुझको
गली में यार की…
बात बात में मुझ को वो
पगली कह जाते, इक अदा से,
इस से बढ़ कर, इश्क़ में यारों
अब ज़रूरत नहीं खिताब की….
असर है आज तक भी
उनकी मजूदगी का कुछ ऐसा
कि तन्हाई भी लगती मुझ को
महफ़िल उन जनाब की….
~Dr. Neeru Jain
India