चले रौब से, हुंकार इक उठी गगन में
शत्रु भी त्राहि त्राहि जपत आए शरण में उठे धधक पौरुष, गए यम बन दूत कटे शीश चरण चूमें बन विजय सबूत अल्टो, पल्टो पुस्तक अपने माज़ी की देखो कैसे हार हुई थी गा़ज़ी की पूरब पश्चिम उल्टी करी चाल हर बाज़ी की आत्मसमर्पण में झुकी गर्दन नियाज़ी की मुक्ति बाहिनी को सराहा हर पल हर क्षण में जैसे कृष्ण थामे हों बांह किसी रण में धस गए वे देह अतल में लिए आए जो विनाश अरमान, नभ, जल, और धरा में गूंजे जय जय हिंदुस्तान।।~Harshita Bisht
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