हवाओं के संग संग
बह रहा संगीत है,
लहरें, आसमा , पत्थर सब
मानो गा रहे प्रेम गीत है…
रोम रोम पुलकित हो रहा है,
दिल झूम रहा है, कि
धुन बांसुरी की मन मोहनी,
बुला रही है,
बिसरा के सुध बुध,
नाच रहा अंतर्मन
ये सब कुछ,
बदला बदला सा क्यूं है
ये पेड़, फूल, तितलियां
मुस्कुरा रही, मेरे संग संग,
मुझे कहां आती थी ये सब बातें
ये कौन है जो मेरे गीत लिख रहा है
चांद, सूरज और ये सितारें
बुन रहे है ताना बना,
कायनात स्वरलहरी बन,
मेरे रोम रोम में उतर रही है..
यूं लग रहा,
कि खुद ईश्वर ही
मेरे गीत लिख रहा है….
~Dr. Neeru Jain
India