तेरी कोख का क़र्ज़,
ढोती रही सारी उम्र,
कोई कुबेर न मिला,
जिसकी पूँजी,
यह क़र्ज़ उतार दे।
और आज मुड़कर देखूँ,
तेरी दैवीय मुस्कान में,
अनकही परतें खुलती दिखी,
हुई क़र्ज़ मुक्त और सम्पन्न,
चूँकि मैं माँ जो बन गई।
~Kumar Ramesh
USA