Poetry

और पापा चले गए

हज़ारों बातें हमसे करने वाले
मम्मी की डांट से हमेशा बचाने वाले
बस एक बार कहने पर
हर ख्वाहिश पूरी करने वाले
जाने कब खामोश हो गए
हमें छोड़ कर जाने कैसे चले गए|
                                                                          
उँगली की गोलाई और हाथों की खुश्की
जिसे पकड़ा कर हमारे नन्हें कदमों संग
रेस लगाया करते थे, कभी जो डगमगा जाते कदम तो
कुछ नहीं हुआ कहकर ढाढस बंधाया करते थे
अभी भी बहुत बार गिरकर खुद उठती हूं
यह सोच कर की शायद फिर से आ जाएं
हांथों को थाम हौसला बढ़ाने|
                                                  
दिन तो हर दिन गुज़रता ही है
पर कुछ यादें, कुछ बातें ठहर सी गई हैं
पापा होते तो कैसे बताते, पापा होते तो कैसे सिखाते
हर मुश्किल पल में मेरी हर मुश्किल का हल कैसे सुझाते,
पापा आप तो कहते थे, डरते क्यूँ हो मैं हूँ ना कुछ नहीं होगा, घबराना मत.
अब जब मन घबराए तो किधर जाऊँ
कोई रास्ता समझ न आए तो किसे बुलाऊं|
                                                  
पता है पापा माँ आपके जैसी हो गईं हैं
अब बात बात पर डांटती नहीं, जाने कहां खोई रहती है.
हमारा हौंसला टूटने नहीं देती, हमें बिना मतलब रोने नहीं देती,
समेट लेती है हर परेशानी अपने आंचल में, हमें परेशान अब वो होने नहीं देती.
माँ अब पापा ही तो बन गई है|
                                                  

~Shivangi Srivastava 

Motihari, India

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