Poetry

खण्डहर

खंडहर से वीरान खड़े हैं

जो कभी मकान हुआ करते थे।
अनगिनत स्मृतियाँ समेटे
गुमनाम खड़े हैं
जो कभी आबाद हुआ करते थे।
ईंट गारों की दीवारें जो चमकदार
हुआ करती थीं कभी
आज जर्जर बेआबरू हो
सरेआम खड़े हैं।
कैसे ज़ज्बात होंगे उस खण्डहर के
लोग रहते थे कभी, बस्ती थी खुशियां
बच्चों की खिलखिलाहट, मनुहार
नव जोड़े की अठखेलियाँ, प्यार
बूढ़े बुजुर्गों के चेहरे की झुर्रियां
जाने कितनी स्मृतियाँ, किलकारियाँ
रुदन, थकान, हसीं।
जाने कितने त्योहार, उत्सव, गीत संगीत।
पूर्वजों की शेष यादें, बातें और जाने क्या क्या.
खण्डहर टूटी फूटी ईंटों का ढांचा मात्र नहीं
एक स्मारक है पुरानी यादों की,
पीढ़ी दर पीढ़ी संजोए हुए हर बात की।
खण्डहर बेज़ुबान होते हैं
अनजान नहीं।

~Shivangi Srivastava

Motihari, India

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