एक बार पूछा राजू ने अपने दादाजी से,
की राजनेता कैसे होने चाहिए,
और क्या होगा हमारे देश का भबिस्य |
इस पर बोले राजू के दादाजी,
की राजनेता होने चाहिए कौटिल्य चाणक्य के जैसे,
और सुनाई राजू को उन्होंने चाणक्य के इतिहास को |
कहा की एक बार चीन से एक दूत आए थे मिलने
चाणक्य से उन्हींके घर पे |
जब देखा चाणक्य ने उनको,
तब वे जिस दिए के रोशनी से कुछ लिख रहे थे,
उसे बुझादिया और एक दूसरे दिए को जलाकर
उनसे मिलने लगे |
जब चीनी दोस्त ने उनसे इसका कारण पूछा,
तब उन्होंने बताया की पहले वाले दिए का तेल
राजकोष से आता था जिससे राज्य का कार्य
कर रहे थे ; जबकि दूसरे वाले दिए का तेल
उनके निजी धन से आया था जो उनके व्यक्तिगत कार्य
में इस्तिमाल करते थे ,
इसीलिए चीनी दूत से मिलते समय दूसरे दिए को
प्रज्वलित किया था!
इसे सुनकर चीनी दूत उनके सामने नतमस्तक होकर
उनके राज्य के प्रति अतुल्य निष्ठा को प्रणाम किया!
राजू के दादाजी बोले की राजनेता को ये दास्तान से
अपने राज्य के प्रति ईमानदारी और कर्त्तव्यनिष्ठा
सिखनी चाहिए |
एक और किस्सा था जब चन्द्रगुप्त ने आचार्य चाणक्य
से मज़ाक मज़ाक में पूछा की अच्छा होता अगर आप
जितने बुद्धिमान हैँ, उतने रुपवान भी होते!
इस पर चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को दो पात्र में पानी पिने
को दी -एक सोने का और दूसरा मिट्टी का!
और फिर पूछा की कौन से पात्र का पानी ज्यादा अच्छा लगा |
चन्द्रगुप्त ने कहा की मिट्टी के पात्र के पानी को पीकर
वे तृप्ति हो गए |
तब चाणक्य ने कहा की ये जरुरी नहीं की जो अच्छा
दीखता हो वह उतना अच्छा गुणवान भी हो!
इसका उदाहरण उनके सामने था – सोने के पात्र जो
बहुत सुन्दर दीखता है वह उसमे रखे पानी को पिने
युक्त मिट्टी के पात्र जैसा नहीं बना पाया जो की बहुत
साधारण दीखता है!
दादाजी ने एक और प्रसंग बताया जब चन्द्रगुप्त मौर्या
ने राजा बनने से मना करदिया और कहा कि जब
चाणक्य जी के सामने एक राजा का अर्थ सिर्फ एक
वेतन पाने युक्त कर्मचारी जैसा हि है, तब वह ये
राजपाठ का क्या करेगा?
आचार्य जी ने तब कहा था कि
उन्होंने चन्द्रगुप्त को राजा बनाने के लिए बचन
दिया था सुखी बनाने के लिए नहीं!
एक राजा तभी सुखी हो पाता है जब उसकी प्रजा
सुख समृद्धि से रहती हो!
आचार्य कि बातें सुनकर चन्द्रगुप्त मौर्या ने अपने
प्रजा के हित मैं हमेशा कार्य करने कि शपथ लिथी |
आचार्य चाणक्य जैसे बिद्वान के कारण हि चन्द्रगुप्त
राजा बन पाए थे!
राजू ने अपने दादाजी कि बातें सुनकर अपनी
सहमति प्रकाश कि और कहा था की सही मैं राजनेता
हो तो आचार्य चाणक्य जैसा हो!
हमारे भारत के राजनेताओं को भी कौटिल्य चाणक्य
के जीवनी से प्रेरणा लेते हुए जनहित मैं
हमेशा कार्यरत होना चाहिए|
ऐसा होने से हमारे देश का भबिस्य उज्वल होगा ||
~Sidhartha Mishra
Sambalpur, India
Really nice. Some of the contents I knew earlier and some were new to learn. Keep it up Sidharta Babu…
A real ironical hit at our politicians of today
thanks for this poem