Poetry

करने पर आए इंसान

करने पर आए इंसान

तो क्या कुछ नहीं कर सकता

जंग भी छेड़ सकता है

और जंग भी जीत सकता है.

 

जब क्रूरता हद से ज्यादा बढ़ जाए

शब्द दर्द सब कम पड़ जाए

कैसे ज़ज्बात होते होंगे

इंसान जब इंसान का बैरी बन जाए.

 

क्यूँ अपनी ताक़त वो समझता नहीं

क्यूँ अच्छे कर्म वो करता नहीं

जाने कितने घर तोड़ता है

जाने कितने दिल दुखाता है

कैसे इतना बेरहम हो जाता है

की निर्दोषों को भी बक्शता नहीं.

 

लोग कहते हैं तक़दीर बुरी होती है

मैं कहती हूँ रफ़ाक़त बुरी होती है

परवरिश तो हर वालीदैन अपने बच्चों की

बहुत उम्दा हिसाब करते हैं.

फ़िर भी ना जाने क्यों बच्चे हिसाब रखते नहीं.

 

कदम बहकने में कब देर भला लगती है

जिंदगी को ख़त्म हो जाने में देर कहाँ लगती है

कोशिशें लाख कर के थक भी जाए इंसान अगर

भोर को आने में फिर देर कहाँ लगती है.

 

ठान ले जो ग़र इंसान तो

क्या कुछ नहीं वो कर सकता

जंग और नफ़रतों को लम्हों में फंना कर सकता

प्यार और दोस्ती से ऊपर जहां में कुछ भी नहीं.

 

करने पर आए इंसान

तो क्या कुछ नहीं कर सकता

जंग भी छेड़ सकता है

और जंग भी जीत सकता है.

 

                                     ~ Shivangi Srivastava

                                             Motihari, India

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