दुख के बाद सुख आता है
और सुख के बाद दुख ।
जैसे दिन और रात दोनों ही
देहधारी प्राणियों के लिए अपरिहार्य हैं।
दुख के बीच सुख है
और सुख के बीच दुख है।
कहा जाता है कि दोनों
मिट्टी और पानी की
तरह एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं।
इसलिए ज्ञानी न तो सुख के
अवसर पर सुख दिखाते हैं
और न ही दुख के अवसर पर
दुख प्रकट करते हैं।
वे सुख और दुख,
सुख और सुख,
दुख और दुख
दोनों के प्रति उदासीन हैं।
सब माया जानकर
मोह में नहीं पड़ते।
मन में ही सुख और दुख हैं।
वे सब्जेक्टिव हैं।
~ Sidharth Mishra
Sambalpur, India