Poetry

देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान |

मातृभाषा को तुच्छ समझते,

पराई भाषा को सिर पर रख्ते |

क्षन सुख के खातिर बच्चों को पराए देश भेजे,

जुदाई का गम फिर हंस कर सेहते |

चंद कागज के लिए तूने किया मिट्टी का अपमान ||

                                   कितना बदल गया इंसान….

 

भोग विलास के लिए तरस्‍ते,

शादी से पहले बंधन जुडते |

 दिल से नहीं दिमाग से मिलते,

तृष्णा चिपाकर फिर से उजड़ते |

जो ना अनुसारे इस्स प्रथा को उसे नहीं मिला सम्मान ||

                                     कितना बदल गया इंसान….

 

वेद न पढते, क़ुरान न पढते,

क्यू इस्का न मोल समजते |

तीसरी आंख से दुनिया देखते,

फिर भी दया ना दुसरो पे फिरते |

आधुनिक खिलौने खेलने से छूटा धर्म का ज्ञान ||

                                    कितना बदल गया इंसान….

 

हालत देख के अपने बच्चों की,

 ना समझे रोए या हसे भगवान ||

                                     कितना बदल गया इंसान….

 

~ Ruvil Deliwala

Ahmedabad, India

 

Note: The poem is inspired by a famous Hindi poem of the same title written by poet Kavi Pradeep

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