Poetry

सरफ़रोशी Reprised

हम-आहंगी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।

देखना है होश कितना मग़्ज़-ए-जाहिल में है।

ए जगत ख़त्म होने को है सब बातचीत,

देखता नहीं तू जिसे, ख़ौफ़ हर उस दिल में है।

ऐ हाकिमी-दवा-ए-इंसानियत, मैं तेरे ऊपर निसार,

अब तेरे जूनून का चर्चा फ़रिश्तों की महफ़िल में है।

देखना है होश कितना मग़्ज़-ए-जाहिल में है।

वक़्त आने पे ना रहेगा तू ऐ आसमान,

हम अभी से जता देंगे जो हमारे दिल में है।

खींच कर लायी है सबको फ़ना होने की उम्मीद,

आशिक़ों का आज जमघट इश्क़ के साहिल पे है।

हम-आहंगी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।

है लिए ग़ुरूर इंसान ताक में बैठा उधर,

और हम तैयार है हृदय लिए अपना इधर।

फ़ूल से खेलेंगे होली रूमुश्किल में है,

देखना है होश कितना मग़्ज़-ए-जाहिल में है।

शम्स जिसमें है सुकून सिसकता नहीं अल्फ़ाज़ से,

सर जो झुक जाते है वो बिखरते नहीं अहंकार से

और बदलेगा जो मुस्तकबिल वह कहाँ किस बिल में है?

हम-आहंगी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।

हम तो दर पे पहुँचे पार कर सारे वतन,

होश सम्भालते, जाँ लुटाते, लड़खड़ाते हुए क़दम

ज़िंदगी तो अपनी मेहमाँ सेठ की महफ़िल में है।

हम-आहंगी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।

खुद फँसा दलदल में जाहिल पूछता रहा है बार-बार,

क्या आरज़ू-ए-सरफ़रोशी भी किसी के दिल में है?

गुप्त आँसुओं की झोली और चेहरों पर इश्किया तेज़ाब,

होश संभलें तो चुग़ली करे तेरे ख़ुदा से आज।

दूर हो गए हम सभी से, सुकून अब कहाँ मंज़िल में है

हम-आहनगी की तमन्ना अब हमारे दिल में है ।

वो जिस्म भी क्या जिस्म है जिसमें ना हो रूह-ए-इबादत,

क्या करे अंजाम से जो हस्थि-ए-राहिल में है।

हम-आहनगी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,

देखना है होश कितना मग़्ज़-ए-जाहिल में है ।

                                                                     ~ Rana Narang

                                                                      New Delhi, India

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