Poetry

ग़ज़ल

बस हो चुकी  अनुराग की, आदर्श की ग़ज़ल

अब  छेड़िए  आक्रोष की – संघर्ष की  ग़ज़ल

पहले  कहें   विचार  की,  विमर्श  की  ग़ज़ल

हो  पाएगी  तभी  किसी  निष्कर्ष की  ग़ज़ल

जो भी  मिला  मुझे, इसी धरती  से  मिला है

मैं क्यों  कहूं  आकाश  के उत्कर्ष  की ग़ज़ल

अनुभूति छुअन की नहीं जिन उंगलियों को है

वे  क्या   सुनाएंगी   तुम्हें ,  स्पर्श  की   ग़ज़ल

पहले  हर  एक  शूल  विपिन से  मिटा  तो दें

फिर  निर्विवाद   गाएं  सभी  हर्ष  की  ग़ज़ल

रच ले  हर  एक  शब्द किसी  मंत्र सा “सुमन”

हो जाएगी  तेरी यह  ग़ज़ल – वर्ष की  ग़ज़ल

                                                                  ~ Subhash Premi “Suman”

                                                                     Faridabad, India

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