आम्र पत्तिओं का बन्दनवार
रंगोली से सजा द्वार
आस्था का दीप जला
अंतः मन का शंखनाद
श्रद्धा सुमन अँजुरी भर
हे !अम्बे माँ करो स्वीकार।
पड़े आहुति
शुम्भ-निशुम्भ
और चण्ड-मुण्ड
से पतित विचारों की।
हो वध,महिषासुर से
दुष्कर्म हमारे…
समाज का वह
खोखला हिस्सा,
जिसमें पनप रहे रावण
अनजाने,अनदेखे
धड़कन बढ़ाते…
वध हो उनका।
न हो संग्राम और
पतन मानवता का
मद्धम-मद्धम
भर जाये
कलश
प्रेम का…
~ Anjana Prasad
Nagpur, India