तुम सिमट जाओ , मै बिखर बिखर जाता हूँ|
तुम संवर जाओ, मैं मिट मिट जाता हूँ ||
तुम उजाले मे रहो , मैं अंधेरो मे गुम हो जाता हूँ |
तुम मगरूर रकीब हो जाओं , मैं मजबूर हबीब हो जाता हूँ ||
तुम नजरें रोशन रहो , मैं बेनजऱ हो जाता हूँ |
तुम सुकूने आबाद रहो , मैं बर्बादे जहां हुआ जाता हूँ
तुम ताजदार रहो , मैं खाकसार हुआ जाता हूँ |
तुम राहते आशियाँ रहो , मैं दरबदर हुआ जाता हूँ ||
तुम मैं के गुरुर मे रहो , मैं हम की तफसील मे खो जाता हूँ ||
तुम मंजिले चाहत पा जाओ, मैं गर्दिशे तूफ़ां से गुजर जाता हूँ |
तुम राहते हयात रहो , मैं फिक्र का सूरज रोशन किये जाता हूँ ||
तुम नजरें कायनात रहो, मैं बेदर्द निगाहो का निशाना हो जाता हूँ |
तुम शायरे ग़ज़ल बन जाओ, मैं नज़म उलझी बन जाता हूँ ||
तुम बेवफाई से दामन तर रहो , मैं शर्त ऐ वफ़ा निबाह जाता हूँ |
तुम कहानी का अहम् किरदार हो जाओ , मैं अधकही कथा का सफर वीरान हो जाता हूँ ||
~Pratima Mehta
Jaipur, India