Poetry

मै बिखर बिखर जाता हूँ

तुम सिमट जाओ , मै बिखर बिखर जाता हूँ|

तुम संवर जाओ, मैं मिट मिट जाता हूँ ||

तुम उजाले मे रहो , मैं अंधेरो मे गुम हो जाता हूँ |

तुम मगरूर रकीब हो जाओं , मैं मजबूर हबीब हो जाता हूँ ||

तुम नजरें रोशन रहो , मैं बेनजऱ हो जाता हूँ |

तुम सुकूने आबाद रहो , मैं बर्बादे जहां हुआ जाता हूँ

तुम  ताजदार रहो , मैं खाकसार हुआ जाता हूँ |

तुम राहते आशियाँ रहो , मैं दरबदर हुआ जाता हूँ ||

तुम मैं के गुरुर मे रहो , मैं हम की तफसील मे खो जाता हूँ ||

तुम मंजिले चाहत पा जाओ, मैं गर्दिशे तूफ़ां से गुजर जाता हूँ |

तुम राहते हयात रहो , मैं फिक्र का सूरज रोशन किये जाता हूँ ||

तुम नजरें कायनात रहो, मैं बेदर्द निगाहो का निशाना हो जाता हूँ |

तुम शायरे ग़ज़ल बन जाओ, मैं नज़म उलझी बन जाता हूँ ||

तुम बेवफाई से दामन तर रहो , मैं शर्त ऐ वफ़ा निबाह जाता हूँ |

तुम कहानी का अहम् किरदार हो जाओ , मैं अधकही कथा का सफर वीरान हो जाता हूँ ||

                                                                                                               ~Pratima Mehta

                                                                                                                 Jaipur, India

Comments are closed.