Poetry

हम तुम

जिंदगी को कितना पीछे छोड़ आये हम तुम

अकेले अकेले कितना लम्बा सफर तय कर आये हम तुम

दयार को उजड़ने से रोक न पाए हम तुम

तोहमतों और तमगो के उनवान मे ही उलझे रहे हम तुम

बेबस परिंदो की मानिंद जाल मे फड़फड़ाते रहे हम तुम

प्रतिस्पर्धा की भावना को सेते रहे हम तुम

समय की गर्द मे स्नेह की स्निग्धा को धुंधला चुके हम तुम

उपालम्भ के पुलिंदों को मन की गहराइयों मे जमा करते रहे हम तुम

तर्क और वितर्क मे उलझे रहे हम तुम

नितांत व्यक्तिगत मसलो को  सार्वजानिक करते रहे हम तुम

निज स्वार्थ  को महत्व देते रिश्तो का मोहरा बनते हम तुम

पर निंदा और ईर्ष्या दग्ध निगाहो के शिकार हम तुम

बातो के सूत्र को अबोलेपन से समेटते हुए हम तुम

दुनियावी रंगमंच पर कई किरदार एक साथ निभाते हम तुम

उलझनों मे उलझे दो पथिक हम तुम

जिंदगी को कितना पीछे छोड़ आये हम तुम

अकेले अकेले कितना लम्बा सफर तय कर आये हम तुम

अलहदा ही सही फिर भी इक राह के हमसफ़र है हम तुम

कई रिश्तो का आधारस्तंभ है हम तुम

                                                                ~Pratima Mehta

                                                                 Jaipur, India

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