कारवां में तन्हा मुसाफिर हूँ |
आबाद जहॉ का बर्बाद सितारा हूँ ||
दुआओ में बददुआ से नवाजा गया हूँ |
महफ़िल की जानिब का अँधेरा किनारा हूँ||
रोशन आलम का मायूस लम्हा हूँ |
संदली एहसास का रिक्त स्पंदन हूँ ||
आकंठ खिले यौवन का निर्मम अक्स हूँ |
उम्मीदों के आशियाने का टुटा हुआ कतरा हूँ ||
मुकम्मल होती किताब की अधूरा अधयाय हूँ |
चमकती कहकशा का टुटा हुआ सितारा हूँ ||
मंजिल के तलबगार रास्तें का पाषाण हूँ |
शफ्फाक बदन पर लगी कालिख हूँ ||
शराफत गारो के पैरहन का पैबंद हूँ |
लहलहाते अरण्य का सूखा दरख्त हूँ ||
पुरषोचित दंभ का शंखनाद हूँ |
दुनियावी महासमर मे अनाधिकार हस्तक्षेप हूँ ||
पर फिर भी जिंदगी की जिजीविषा से परिपूर्ण हूँ |
इतिहास का नया सफ़ा लिखने को प्रतिबद्ध हूँ
~Pratima Mehta
Jaipur, India
कारवां में तन्हा मुसाफिर हूँ |
आबाद जहॉ का बर्बाद सितारा हूँ ||
एक एक पंक्तिया लाजवाब।बेजोड़ शब्दों का संगम।बहुत ही बढ़िया कविता लिखा है आपने।??