न जाने ये कैसी दुनिया का निजाम हो गया है |
जहा हर तरफ हो रही है ,इंसानियत शर्मसार|
यहाँ हर तरफ पहरा है ,धर्म और मजहब का |
यहाँ जानी जाती है ,पैसे से औकात इंसान की |
यहाँ पहचान होती है ,शोहरत मंद की |
यहाँ होता नहीं ,कोई मोल इमां का |
यहाँ भरमार है ,बेशुमार घोटालेबाजो की |
यहाँ नहीं है ,कोई सरमाया मुफ़लिसों का|
यहाँ हो रहा है ,भाई भाई के खून का प्यासा |
यहाँ हो रही है ,वहशीपन का शिकार नन्ही नन्ही कलियाँ|
यहाँ हो रहा ,अपमान है नारी का |
यहाँ बिछा है ,जाल गोरख धंधो का |
यहाँ बढ़ती जा रही है ,हैवानियत इंसानो की |
ये न जाने कैसी दुनिया का निजाम हो गया है |
इत्ती हो रही है ,संस्कृति के हनन की |
खंडित हो रही है ,मानवीय संवेदनाये |
निरंकुश हो रही है ,सभ्यता |
ये न जाने कैसा दुनिया का निजाम हो गया है|
निरुद्देश्ये और विध्वंसकता दुनिया का मकसद बन गया है |
~Pratima Mehta
Jaipur, India