कब तक ,आखिर कब तक ,
मूक विवशता को ढाल बनाएंगे |
कब तक ,आखिर कब तक ,
बिफ़रते मन को बहलायेंगे |
कब तक ,आखिर कब तक ,
वक्त के हाथो हताश होते रहेंगे |
कब तक ,आखिर कब तक ,
चीत्कार को अनसुना करेंगे |
कब तक ,आखिर कब तक ,
धर्म की दुहाई देते रहेंगे |
कब तक ,आखिर कब तक ,
सहनशीलता का बहाना करेंगे |
कब तक ,आखिर कब तक ,
तमाशबीन बन कर लाशो के ढेर को देख कर अनदेखा करेंगे |
कब तक ,आखिर कब तक ,
सिसकती मासूमियत को अभिशप्त होते देखते रहेंगे |
कब तक ,आखिर कब तक ,
निर्लज आचरण को जज्ब करते रहेंगे|
कब तक ,आखिर कब तक ,
स्वकेन्द्रित होकर जीते रहेंगे |
कब तक ,आखिर कब तक ,
कुत्सित इरादों को सहते रहेंगे |
कब तक ,आखिर कब तक ,
सुकोमल बचपन को झुलसते हुए देखते रहेंगे |
कब तक ,आखिर कब तक ,
बस बहुत हुआ |
कब तक ,आखिर कब तक ,
नहीं सहेंगे तब तक ,
इंसाफ की लहार नहीं उठेगी जब तक |
~Pratima Mehta
Jaipur, India