Poetry

आखिर कब तक

कब तक ,आखिर कब तक ,

मूक विवशता को ढाल बनाएंगे |

कब तक ,आखिर कब तक ,

बिफ़रते मन को बहलायेंगे |

कब तक ,आखिर कब तक ,

वक्त के हाथो  हताश होते रहेंगे |

कब तक ,आखिर कब तक ,

चीत्कार को अनसुना करेंगे |

कब तक ,आखिर कब तक ,

धर्म की दुहाई देते रहेंगे |

कब तक ,आखिर कब तक ,

सहनशीलता का बहाना करेंगे |

कब तक ,आखिर कब तक ,

तमाशबीन बन कर लाशो के ढेर को देख कर अनदेखा करेंगे |

कब तक ,आखिर कब तक ,

सिसकती मासूमियत को अभिशप्त होते देखते रहेंगे |

कब तक ,आखिर कब तक ,

निर्लज आचरण को जज्ब करते रहेंगे|

 कब तक ,आखिर कब  तक ,

स्वकेन्द्रित होकर जीते रहेंगे |

कब तक ,आखिर कब तक ,

कुत्सित इरादों को सहते रहेंगे |

कब तक ,आखिर कब तक ,

सुकोमल बचपन को झुलसते हुए देखते रहेंगे |

कब तक ,आखिर कब तक ,

बस बहुत हुआ |

कब तक ,आखिर कब तक ,

नहीं सहेंगे तब तक ,

इंसाफ की लहार नहीं  उठेगी जब तक |

 

                                                         ~Pratima Mehta

                                                             Jaipur, India

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