हमने जो सियासत के रंग देखे,
घर की कुर्सियां तोड़ दीं,
हमने जो रवायतों के ढंग देखे,
मोहब्बत करनी भी छोड़ दी,
नाबराबरी से जो हम हुए रूबरू,
हसरतों पे अपनी शर्मसार हो गए,
बस इन दो शब्दों के लायक ही बचे हैं,
वर्ना यूँ समझिये के हम बेकार हो गए…
~Manu Kanchan
Kanpur, India