अक्कड़ बक्कड़ मियां भुलक्कड़
निकल पड़े थे सैर को
सरपट दौड़े लगे हांफने
लगी जो पीछे भैस दो.
मियां ने सोचा भागूं कैसे
आ गई शामत आज तो
तभी दिखा कल्लू चरवाहा
जान में जान आयी अब तो.
अभी उठे थे धोती समेटी
कीचड़ में फिसले जोर वो
मियां ने अपना माथा पीटा
कैसा दिन है आज यो.
भूल गए किस काम को निकले
किधर था जाना शाम को
किसी तरह से घर को पहुंचे
गिरते पड़ते आज वो.
~ Shivangi Srivastava
Motihari, India