Poetry

मियां भुलक्कड़

अक्कड़ बक्कड़ मियां भुलक्कड़

निकल पड़े थे सैर को

सरपट दौड़े लगे हांफने

लगी जो पीछे भैस दो.

 

मियां ने सोचा भागूं कैसे

आ गई शामत आज तो

तभी दिखा कल्लू चरवाहा

जान में जान आयी अब तो.

 

अभी उठे थे धोती समेटी

कीचड़ में फिसले जोर वो

मियां ने अपना माथा पीटा

कैसा दिन है आज यो.

 

भूल गए किस काम को निकले

किधर था जाना शाम को

किसी तरह से घर को पहुंचे

गिरते पड़ते आज वो.

 

                                        ~ Shivangi Srivastava

                                             Motihari, India

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