कुछ अधूरी ख्वाहिशें
कुछ मचलते गीत
कुछ बेगाने चहरे
कुछ पुराने मीत,
ज़िन्दगी की सहर
और शाम किस कदर
आजकल आती जाती है
बेख्याली ऐसी की अब
तो नींद भी ना आती है
जाने कितना सताती है
बेतकल्लुफ ज़िन्दगी.
गुमनाम सी ये ज़िन्दगी
बेनाम से फ़साने
हम चले थे बताने
अनकहे अफ़साने.
क्या पता किस करवट
सिमटती है ज़िन्दगी
बस चलती ही जाती है
बेतकल्लुफ ज़िन्दगी.
कहने को तो हज़ार
इरादे, सपने, सीने में दबाये
कुछ तमन्नाएं, कुछ उम्मीदें
आखों में बसाये
किराये के आशियानों
में ख्वाब लाखों सजाये
बस चलती ही जाती है
बेतकल्लुफ ज़िन्दगी.
सर्दी की रातों में
गर्मी देते अलाव सी
गर्मी की सुबह में
किसी पेड़ की ठंडी छांव सी
बारिश में थिरकती
बूंदों के बहाव सी
बस चलती ही जाती है
बेतकल्लुफ ज़िन्दगी.
~ Shivangi Srivastava
Motihari, India
Very well said 👏